बायो-सीएनजी संयंत्रों के लिए सार्वजनिक उपक्रमों को रियायती लीज दरों पर होगा जमीनों का आबंटन

   रायपुर  मुख्यमंत्री  विष्णु  देव  साय की पहल पर छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय निकायों में जैव अपशिष्ट सह  कृषि अपशिष्ट के प्रसंस्करण के  लिए बायो-सीएनजी प्लांट लगाए जाएंगे। रायपुर, भिलाई…

बायो-सीएनजी संयंत्रों के  लिए  सार्वजनिक उपक्रमों को रियायती लीज दरों  पर होगा  जमीनों  का  आबंटन

 

 रायपुर

 मुख्यमंत्री  विष्णु  देव  साय की पहल पर छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय निकायों में जैव अपशिष्ट सह  कृषि अपशिष्ट के प्रसंस्करण के  लिए बायो-सीएनजी प्लांट लगाए जाएंगे। रायपुर, भिलाई समेत आठ निकायों में जमीन का चिन्हांकन किया जा चुका है। इन स्थानों पर बीपीसीएल और गेल 800 करोड़ का प्लांट लगाएंगे।

 उल्लेखनीय  है  कि  पिछले 17 अप्रैल 2025  को  मुख्यमंत्री   श्री  विष्णु  देव  साय की  अध्यक्षता  में  आयोजित कैबिनेट की  बैठक  में  बायो- सीएनजी संयंत्रों के  लिए  सार्वजानिक  उपक्रमों  को  एक  रुपये  प्रति  वर्गमीटर  की  रियायती  दर  पर  भूमि  आबंटित किए  जाने  का  निर्णय  लिया  गया  था। कैबिनेट के निर्णय  के  बाद  नगरीय  प्रशासन  विभाग  द्वारा सभी  कलेक्टरों  को    जमीन  आबंटन  को  लेकर  निर्देश  जारी  कर  दिए  गए  हैं।

  बीपीसीएल और गेल कंपनी को एक रुपए वर्गमीटर में 10 एकड़ जमीन 25 साल की लीज पर दी जाएगी। जैव अपशिष्ट सह  कृषि अपशिष्ट का  प्रसंस्करण इन संयंत्रों  में  किया  जाएगा।
भारत में उपयोग होने वाले सीएनजी का लगभग 46 फीसदी वर्तमान में आयात किया जाता है और सरकार का लक्ष्य बायो-सीएनजी के उत्पादन और खपत के माध्यम से इस निर्भरता को कम करना है। बायो सीएनजी, जिसे बायो कंप्रेस्ड नेचुरल गैस भी कहा जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से वाहनों के ईंधन आऔर घरेलू ऊर्जा के रूप में किया जाता है। साथ ही सीएनजी वाहनों को ईंधन देने के लिए, एलपीजी के विकल्प के रूप में खाना पकाने और हीटिंग के लिए, बिजली उत्पादन के लिए, कुछ उद्योगों में हीटिंग और अन्य प्रक्रियाओं के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का अनुमान है कि भारत में बायो-सीएनजी उत्पादन की क्षमता लगभग 70 मिलियन मीट्रिक टन है। इसका उत्पादन बाजार की मांग के अनुरूप है, जिससे यह आर्थिक रूप से पूरी तरह व्यवहारिक है।

क्या है बायोसीएनजी?

बायोसीएनजी का उत्पादन जैविक अपशिष्ट पदार्थों जैसे पशु अपशिष्ट, खाद्य अपशिष्ट और औद्योगिक कीचड़ को बायोगैस और डाइजेस्टेट में तोड़कर किया जाता है। यह प्रक्रिया एक सीलबंद, ऑक्सीजन रहित टैंक में होती है, जिसे एनारोबिक डाइजेस्टर भी कहा जाता है। फिर बायोगैस को संसाधित किया जाता है, जिससे 95 फीसदी शुद्ध मीथेन गैस प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया से उच्च गुणवत्ता वाला सांद्रित तरल उर्वरक प्राप्त होता है।

महीनेभर के भीतर टेंडर की प्रक्रिया की जाएगी शुरू

नगरीय प्रशासन  विभाग  के  अनुसार प्रदेश के आठ स्थानों पर जमीन का चिन्हांकन कर लिया गया है। इसके लिए जल्द ही टेंडर प्रक्रिया शुरू की जाएगी। एक महीने के भीतर ही इसका टेंडर फाइनल करने के बाद काम शुरू कर दिया जाएगा। इसके बाद निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।